Wednesday, August 11, 2021

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी की असली वजह

पिछले कुछ महीनों से पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं। पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमत अब देश के सभी हिस्सों में पिछले सभी रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर गई है। हर कोई जानता है कि पेट्रोल और डीजल की इस कीमत का बोझ अंततः देश के अधिकांश गरीब लोगों पर पड़ेगा, जिनमें मजदूर और किसान भी शामिल हैं, भले ही वे खुद कभी पेट्रोल या डीजल नहीं खरीदते हैं। तेल की बढ़ती कीमतों, विशेष रूप से डीजल से परिवहन लागत में वृद्धि होगी। नतीजतन, बस किराया में वृद्धि होगी, सब्जियों सहित हमारी जरूरत की हर चीज की कीमत बढ़ जाएगी। यह कहना भी गलत है कि बढ़ेगी, दरअसल इस बार तेल के दाम बढ़ने से सब्जियों के दाम पहले ही बढ़ चुके हैं | हम सब महंगाई की मार महसूस करने लगे हैं |

पेट्रोल-डीजल के दाम इस तरह क्यों बढ़ रहे हैं? सरकार का तर्क हम सभी जानते हैं-अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल या पेट्रोलियम के दाम बढ़ रहे हैं, ऐसे में घरेलू बाज़ार में तेल की कीमत बढ़ेगी, अतः और क्या किया जा सकता है? लेकिन, सारा पूंजीपति मीडिया भी अब बहुत जोर-शोर से रिपोर्ट कर रहा है कि  सरकार बिल्कुल भी सच नहीं बोल रही है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी का मुख्य कारण अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी नहीं है। देश के बाज़ार में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने की सबसे बड़ी वजह तेल पर सरकार का टैक्स है | 1 जुलाई के एक आंकलन के मुताबिक उस वक्त दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 98.80 रुपये प्रति लीटर थी, जिसमें से 55.70 रुपये सरकारी टैक्स था। यानी पेट्रोल पर सरकार की टैक्स दर 56.37 फीसदी है | हर राज्य में पेट्रोल-डीजल की कीमत में कुछ अंतर है, टैक्स के हिस्से में कुछ अंतर हो सकता है, लेकिन गणना हर जगह समान है। [स्रोत 1 ] डीजल पर सरकार का टैक्स भी करीब एक जैसे है। 15 मई की गणना के अनुसार, दिल्ली में पेट्रोल पर सरकारी कर 58.6 फीसदी है और डीजल पर सरकारी कर 52.85 फीसदी है। [स्रोत 2]

लेकिन, यह जानकारी का सिर्फ़ एक पहलू है। इससे भी बड़ी बात यह है कि न केवल करों की राशि में वृद्धि हुई है, बल्कि सरकार ने कर की दर में भी लगातार वृद्धि की है। इसका मतलब है कि अगर किसी वस्तु की कीमत 50 रुपये है और सरकारी कर 20% है, तो कर की राशि 10 रुपये होगी। और अगर वस्तु की कीमत बढ़कर 100 रुपये हो जाती है, तो कर की दर न बढ़ने पर भी कर की राशि 20 रुपये हो जाएगी। दूसरे शब्दों में, भले ही टैक्स की दर न बढ़े, पेट्रोल और डीजल पर टैक्स की राशि बढ़नी चाहिए। हालांकि, टैक्स और भी बढ़ गए हैं। पिछले 7 साल में पेट्रोल-डीजल पर टैक्स की रकम में न सिर्फ़ इजाफ़ा हुआ है, बल्कि टैक्स की दर में भी लगातार बढ़ोत्तरी की गयी है |

जून 2014 में, जब मोदी जी के नेतृत्व में बीजेपी या एनडीए गठबंधन 'अच्छे दिन' के सपने के साथ सत्ता में आयी, तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73 रुपये थी और टैक्स 22.60 रुपये था। और ये तो पहले ही बताया जा चुका है कि इस साल 1 जुलाई की गणना के अनुसार, एक लीटर पेट्रोल की कीमत 98.80 रुपये है, जिसमें टैक्स ही 55 रुपये 70 पैसे है। दूसरे शब्दों में, एक लीटर पेट्रोल पर टैक्स 33.10 रुपये बढ़ गया है। समझे, टैक्स छोड़कर एक लीटर पेट्रोल की कीमत महज 39 रुपये 30 पैसे है। और इस पर सरकार का टैक्स 33 रुपये 10 पैसे बढ़ गया है | और यह सब मोदी सरकार के “अच्छे दिन” के दौरान हो रहा है। लेकिन, इससे एक और बात सामने आती है --- तब पेट्रोल पर कर की दर करीब 31 फीसदी थी  (खास तौर पर 30.95 फीसदी) । अब कर की दर 56.37 फीसदी है। दूसरे शब्दों में कहें तो पिछले सात सालों में मोदी सरकार ने न सिर्फ़ पेट्रोल और डीजल पर प्रति लीटर ज्यादा टैक्स वसूला है, बल्कि और भी ऊंची दर से भी टैक्स वसूला है | [स्रोत 1 ] दुनिया में पेट्रोल और डीजल पर सबसे ज्यादा सरकारी कर कहाँ है? भारत में। इस लिहाज से भारत ने सच में ही विश्वगुरु बन चुके है!

नतीजतन, सरकार की आय में कितने पैसे की वृद्धि हुई है? एक अनुमान है कि जब मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई तो 2014-15 में केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों पर 74,158 करोड़ रुपये का टैक्स वसूला | और इसमें बढ़ोत्तरी के बाद आज 2020-21 में यह रकम कहाँ खड़ी है ? लोकसभा में राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के बयान में कहा गया है कि अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 तक के 10 महीनों में सरकार ने 295,000 करोड़ रुपये का संग्रह किया है, जो 2014-15 के तुलना में 300 फीसदी से अधिक है। पूरे वर्ष की गणना स्वाभाविक रूप से इससे भी अधिक होगी। [स्रोत 3 ]

सरकार ने इस तरह टैक्स बढ़ाया और हमें कोई सुराग नहीं मिला क्यों? वजह यह है कि 2014 में मोदी के पहली बार सत्ता में आने के बाद से उन्हें एक फायदा मिला है- अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल-डीजल के दाम गिरते जा रहे थे | 2012 में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल थी। यह 2016 में घटकर केवल 28 डॉलर रह गया। (1 बैरल यानी लगभग 159 लीटर)। इसका मतलब है कि 2014 से 2016 तक के दो वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमत में 75% की कमी आई है। हालांकि, सरकार ने देश के बाज़ार में तेल की कीमत में कोई कमी नहीं की । उस वक्त देश के बाज़ार में पेट्रोल और डीजल के दाम में क्रमश: 13 फीसदी और 5 फीसदी की कमी आई थी | [स्रोत 3 ] सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में कमी का फायदा उठाने के लिए पेट्रोल और डीजल पर कर बढ़ा रही थी । चूंकि तेल की कीमत थोड़ी कम हुई, लोगों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा और न ही वे ज्यादा हंगामा किया । 2018 के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें फिर से बढ़ने लगीं। सरकार ने करों को कम करके घरेलू बाज़ार में तेल की कीमत को नियंत्रित करने के बजाय अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमत बढ़ने के बहाने देकर तेल की कीमत बढ़ाना शुरू कर दिया। अब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमत करीब 77 डॉलर प्रति बैरल है। यदि पेट्रोल-डीजल की कीमत अब 100 रुपये से अधिक हो जाती है, तो देश के बाज़ार में पेट्रोल-डीजल की कीमत क्या होगी जब तेल की कीमत 2012 की तरह 112 डॉलर प्रति बैरल हो जाएगी? 150 रुपये बन जाएगी क्या ? और क्या होगा अगर 2008 की तरह अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पेट्रोलियम की कीमत 149 डॉलर प्रति बैरल हो गई? तो क्या सरकार देश के बाजार में पेट्रोल-डीजल 200 रुपये प्रति लीटर पर बेचेगी? मोदी की बीजेपी केंद्र सरकार देश की जनता को किस तबाही  की ओर ले जा रही है?

हिटलर के पास गोएबल्स (हिटलर के प्रचार मंत्री) थे । उसकी नीति थी झूठ को इतनी बार कहो कि वो सच बन जाए तब लोग झूठ को सच मानने लगेंगे । यही मोदी की या भाजपा-सह-संघ परिवार की नीति है । हर दिन वे झूठ की खेती कर रहे हैं। और उनका आईटी सेल उस काम में सबसे आगे है। इस आईटी सेल ने कुछ दिन पहले ट्वीट किया था कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के पीछे असली दोषी यूपीए सरकार है। क्यों? क्योंकि, जब यूपीए सरकार सत्ता में थी, उन्होंने बाज़ार में तेल बांड नामक एक बांड जारी किया और बाज़ार से उधार लिया और उस ऋण के पैसे से उन्होंने तेल में सब्सिडी दी। सरकार कह रही है कि अब उन्हें इसलिए कर्ज चुकाना है, और ऐसे में उनके पास तेल के दाम बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है |

यह तो पूरा झूठ है। यह सच है कि यूपीए सरकार ने तेल बांड जारी कर बाज़ार से उधार लिया। लेकिन, अभी तक इस सरकार को उस कर्ज का लगभग कुछ भी चुकाना नहीं है। अकेले वर्ष 2015 में सिर्फ 3500 करोड़ रुपये चुकाने पड़े। इसलिए, मोदी सरकार द्वारा इतने लंबे समय तक पेट्रोल और डीजल की करों में बढ़ोत्तरी के साथ तेल बांडों का कोई लेना-देना नहीं है । यह सच है कि अब से 2026 तक सरकार को इस तेल बांड का ब्याज और मूलधन चुकाना होगा। लेकिन, वह कितना है? 2021-22 में सरकार को 20 हजार करोड़ रुपये देने होंगे। अगर भले ही उस पैसे को टैक्स के पैसे से चुका दिया जाए, तब भी यह देखा जा सकता है कि सरकार ने पिछले 6 सालों में टैक्स में 2 लाख करोड़ रुपये और बढ़ा लिया हैं। तो साफ़ ज़ाहिर है कि 2 लाख करोड़ रुपये कर बढ़ाने से तेल बांडों का कोई लेना-देना नहीं है, है न?

अब सवाल यह है कि सरकार ने टैक्स क्यों बढ़ाया, जब टैक्स का ज्यादातर पैसा मेहनती लोगों या मजदूरों और किसानों सहित मध्यम वर्ग को देना पड़ता है ? इस सवाल पर जाने से पहले कि सरकार ने टैक्स क्यों बढ़ाया, यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि भले ही मोदी या बीजेपी की केंद्र सरकार इस पूरी साजिश का मास्टरमाइंड हो, लेकिन अन्य दलों की सरकारें भी दूध से धुले हुए नहीं है । पेट्रोल और डीजल पर टैक्स का एक हिस्सा केंद्रीय है, बाकी राज्य का है । जून 2014 के दौरान पेट्रोल की कीमत का 16.71 फीसदी राज्य कर था और 14.2 फीसदी केंद्रीय कर था। अब जुलाई 2021 में, पेट्रोल पर केंद्रीय कर 33.3 फीसदी है, जिसका अर्थ है कि मोदी सरकार ने कर की दर को दोगुना कर दिया है। हालांकि, राज्य सरकारें चुप नहीं बैठीं। अब राज्य कर की दर लगभग 23% है। यानी केंद्र की तरह न बढ़ने पर भी राज्यों की कर की दर भी बढ़ी है [स्रोत 1]। क्या राज्य सरकारें इस टैक्स का एक हिस्सा माफ कर रही हैं? नहीं । इस साल फरवरी में जिन दो सरकारों ने टैक्स में छूट दी है, वे हैं पश्चिम बंगाल और असम | इसका कारण समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं होना चाहिए। दोनों राज्यों में मई में चुनाव हुई थी।

वैश्वीकरण और उदारीकरण के इस दौर में सरकारें और उनके बुद्धिजीवी और बड़े पूंजीपति वर्ग के प्रतिनिधि एक बात कहते हैं - सरकार को व्यापार-धंधा में नहीं रहना चाहिए, व्यापार-धंधा चलाना पूंजीपतियों का काम है | व्यापार को पूंजीपतियों के हाथ छोड़ देना चाहिए और सरकार को शासन चलाना चाहिए। एक और बात वे कहते हैं - कि सरकार को किसी भी चीज की कीमत पर नियंत्रण नहीं रखना चाहिए। कीमत बाज़ार द्वारा तय होना चाहिए । हालाँकि हम जानते हैं कि बाज़ार द्वारा सामानों का कीमत तय करने की असली मतलब है मोनोपॉली यानी इजारेदार पूंजी द्वारा कीमत तय करना | हम यहां उस विषय पर विचार नहीं करेंगे । सवाल यह है कि फिर सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमत क्यों तय कर रही है? अगर सरकार या पूंजीपति वर्ग के प्रतिनिधि जिन नियमों की बात कर रहे थे, उनका पालन यहाँ किया जाता, तो पेट्रोल-डीजल के दाम वैसे ही नीचे जाना  चाहिए थे, जैसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कीमतें गिर जातीं। सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही है? क्या जब सरकार की फायदा नहीं होता तब एक नियम है, और जब सरकार को लाभ होता है तब दूसरा नियम ? यानी चित भी मेरा और पट भी मेरा ! ये तो सरकार के बहुत अच्छे नियम हैं। वाह!

अगर यह माना कि यह मोदी सरकार का अपना फैसला है, फिर यह सवाल उठता है कि बड़े पूंजीपतियों के प्रतिनिधि उन्हें इस विषय में सलाह क्यों नहीं दे रहे हैं। वे समय-समय पर सरकार को तरह तरह के सुझाव तो देते आए हैं। तो क्या इस कर की बढ़ोत्तरी में बड़े पूंजीपतियों के हित भी शामिल हैं? हाँ ये सच है। इस सदी के पहले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में उछाल आने के बाद 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर शुरू हो गया है, जो दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है । जब तक बड़े पूंजीपतियों का मुनाफा बढ़ रहा था, वे सरकार की नीति यानी तत्कालीन यूपीए सरकार से संतुष्ट थे। लेकिन 2010 के बाद से वे अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए मुखर रहे हैं ताकि वे अपने गिरते मुनाफे को बढ़ा सकें। इस कारण से, वे दूसरी यूपीए सरकार को “नीतिगत पक्षाघात” से ग्रस्त करार दिया और तीव्र आलोचना करने लगे। यह भी हमारे लिए अज्ञात नहीं है कि गुजरात मॉडल के कलाकार नरेंद्र मोदी को सत्ता में लाने के लिए बड़े पूंजीपतियों का एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली तबका जी जान लगाकर कोशिश किया ताकि वे मोदी सरकार के नेतृत्व में अपनी चाहते आर्थिक "सुधार" हासिल कर सकें। यहाँ यह बताने की मौका नहीं है कि मोदी सरकार ने पिछले 7-8 सालों में बड़े पूंजीपतियों के हित में क्या क्या कदम उठाए हैं । हालांकि, सरकार के इस कदम का एक प्रमुख पहलू है एक तरफ बड़े पूंजीपतियों पर करों में छूट देने से लेकर दूसरी तरफ सरकारी खजाने से विभिन्न प्रोत्साहन और राहत पैकेज देना शामिल है। उदाहरण के लिए, यूपीए सरकार के दौरान, अप्रत्यक्ष करों और प्रत्यक्ष करों का संतुलन कुछ प्रत्यक्ष करों के तरफ झुका हुआ था । यानी सरकारी राजस्व में प्रत्यक्ष करों की हिस्सेदारी बढ़ाई गई थी । हम जानते हैं कि प्रत्यक्ष करों का भुगतान पूंजीवादी संगठन और अमीर और उच्च मध्यम वर्ग द्वारा किया जाता है। बड़े पूंजीपतियों को देखते हुए मोदी सरकार ने प्रत्यक्ष करों का हिस्सा कम करना शुरू कर दिया। बड़े पूंजीपतियों का सबसे बड़ा फायदा कॉरपोरेट करों में कटौती करना रहा है, जिसे लगभग 40% से घटाकर 25% कर दिया गया है। इससे बड़े पूंजीपतियों की लाभ दर में वृद्धि हुई। फिर पूंजीपतियों के लाभ की दर को बढ़ाने के लिए यह सरकार ने मजदूरों के अधिक शोषण का रास्ता खोलने के लिए नया श्रम कानून लाई, बड़े पूंजीपतियों के पूँजी निवेश का और अधिक रास्ते खोलने के लिए कृषि कानून लाई है, नए क्षेत्रों में नए निवेश का विशेष सुविधा मुहैया कराई, विनिवेश्करण के नाम पर बड़े पूंजीपतियों को सरकारी संस्थान सौंपना शुरू किया । हालांकि, सिर्फ उसी से मंदी का अंत करना संभव नहीं है । आर्थिक मंदी का एक बड़ा कारण यह है कि देश का बाजार सिकुड़ रहा है, देश की जनता के पास खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। सरकार को बाज़ार का विस्तार करने के लिए, उपभोक्ता ऋण की व्यवस्था करने की ज़रूरत है, बुनियादी ढांचे में निवेश करने की ज़रुरत है । बुर्जुआ अर्थशास्त्री सोचते हैं कि इससे बाज़ार खुल जाएगा। लेकिन, यह पैसा आएगा कहां से? इसे पूंजीपतियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, बल्कि उन्हें रियायतें देनी पड़ रही है । अप्रत्यक्ष करों (मुख्य रूप से जीएसटी) से सरकार का राजस्व का आमदनी आर्थिक मंदी के कारण नहीं बढ़ रहा है। सरकार की आमदनी बढ़ानी होगी, लेकिन पूंजीपतियों पर दबाव बनाकर नहीं, बल्कि उन्हें रियायतें देकर। इसके साधन सरकार के हाथ में बहुत सीमित हैं। एक तरीका यह है विनिवेश्करण, विरासत में मिली सरकारी संपत्ति, जनता की संपत्ति को बेच दिया जाए। दूसरा तरीका पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढ़ाना है। पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स लगाकर आय बढ़ाने के लिए सरकार ने शुरू से ही पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया है । 2014 के बाद, सरकार को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में गिरावट के कारण घरेलू बाज़ार में तेल की कीमतें बढ़ाये बिना कर बढ़ाने का मौका मिला । इसी वजह से सरकार ने तेल की कीमतों को एक स्तर पर रखते हुए जितना हो सके टैक्स बढ़ा दिया था । लेकिन, अब जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें बढ़ने लगी हैं, घरेलू बाज़ार में तेल की कीमतें बढ़ रही हैं। हालांकि, अर्थव्यवस्था की स्थिति अब ऐसी है कि सरकार की व्यय तेजी से बढ़ी है, खासकर दो साल की कोरोना महामारी में चरम मंदी के कारण । ऐसे में सरकार पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम नहीं कर पा रही है | तब आमदनी कम हो जाएगी। सब्सिडी पहले से ही बढ़ रही है। अगर उस पर आय घटती है, तो सब्सिडी और बढ़ेगी । हालांकि, तेल की कीमतों में वृद्धि का मतलब यह नहीं है कि बड़े पूंजीपति वर्ग को कोई समस्या नहीं है। कुछ दिनों पहले, बड़े पूंजीपतियों के प्रतिनिधित्व करने वाली एक अंग्रेजी दैनिक सरकार को इसके बारे में चेतावनी दी है । उन्होंने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि जिस तरह से पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं, उससे आम तौर पर उपभोक्ता वस्तुओं के लिए व्यय में कमी आई है। इसका मतलब जनता की क्रय क्षमता घट रही है । इससे फिर अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालना और ज्यादा मुश्किल होगा। इसलिए उन्होंने आंशिक तौर पर कर में कटौती का सुझाव दिया है। यानी सरकार के लिए अब दुविधा पैदा हो गई । हमें नहीं पता कि केंद्र सरकार और बड़े पूंजीपति आने वाले दिनों में इस संकट से बचने के लिए क्या कदम उठाएंगे, लेकिन एक बात तय है । वे जो भी कदम उठाएंगे, वे बड़े पूंजीपतियों के हितों को देखते हुए मेहनतकशों पर और ज्यादा बोझ बढ़ाकर इस संकट से बाहर निकलने की कोशिश करेंगे।

हमें यह समझना होगा कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि वास्तव में इसी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और इसे बचाने के लिए बड़े पूंजीपतियों की रखवाली कर रही सरकारों की नीतियों का परिणाम है। नतीजतन, इस प्रणाली के अन्दर किसी भी कदम का समाधान खोजना क्रांतिकारियों का काम नहीं है । यह तय करना क्रांतिकारियों का काम यह समझाना नहीं है कि, मोदी सरकार के अलावा कोई और होने से हल निकलेगा या नहीं, या मेहनतकशों का थोडा भी भला होगा या नहीं । वर्तमान समय में पेट्रोल-डीजल के दामों में वृद्धि के कारण मजदूर, मेहनतकशों को उन अनुभवों से सीखना होगा जिनसे वे गुज़र रहे हैं और उन्हें जागरूक करना होगा कि उनके जीवन में इस संकट का कारण पूंजीपतियों का शोषण है और एकमात्र रास्ता उस शोषण को समाप्त करना है। और हमें उस मक़सद से लड़ने के लिए उन्हें जगाना होगा। यही क्रांतिकारियों का काम है।

सूत्र:--

1. The Print

(https://theprint.in/economy/40-rise-77-jump-petrol-price-hiked-under-modi-govt-upa-reasons-differ/690653/)

2. Autocar

https://www.autocarindia.com/car-news/petrol-diesel-price-and-tax-break-down-in-india-420823

3. Hindustan Times, 22 March,

https://www.hindustantimes.com/india-news/central-government-s-tax-collection-on-petrol-diesel-jumps-300-in-6-years-101616412359082.html

 

 


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