Tuesday, March 23, 2021

 

       पश्चिम बंगाल में अगले विधानसभा चुनाव के लिए प्रस्ताव

1.  वर्ग संघर्ष के निम्न स्तर के स्थिति में कम्युनिस्ट आम तौर पर बुर्जुआ संसदीय चुनावों में भाग लेते हैं। हालाँकि, चुनाव में भागीदारी का रणकौशल सुधारवादियों के भागीदारी की रणकौशल से पूरी तरह से अलग होता है। कम्युनिस्ट क्रांतिकारी चुनाव के दौरान पैदा हुए राजनीतिक माहौल का इस्तेमाल करते हैं। वे मजदूर वर्ग और आम जनता के बीच, बुर्जुआ स्वार्थ की हिफाज़त करने वाली, इस संसदीय प्रणाली के वर्ग चरित्र का खुलासा करते हैँ; इस तरह समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने की जरूरत पर जोर देते हैं ।

वे चुनाव के माध्यम से मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी प्रतिनिधियों को संसद में भेजने की  कोशिश करते हैं ताकि संसद से बाहर चलने वाले वर्ग-संघर्ष को संसद के भीतर प्रतिबिंबित किया जा सके एवं पिछड़े लोगों को संसद के ठोस अनुभव के माध्यम से संसदीय प्रणाली के मोह से मुक्त किया जा सके। चूंकि वर्तमान में मजदूर वर्ग की कोई पार्टी नहीं है, इसलिए उम्मीदवारों को खड़ा कर चुनाव में भाग लेना नामुमकिन है।

इस प्रकार पश्चिम बंगाल की आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों का मौजूदा कार्यभार संसदीय प्रणाली के वर्ग चरित्र को उजागर करने वाला एक क्रांतिकारी अभियान का आगाज करना है। साथ ही साथ एक वर्ग आधारित पार्टी निर्माण के मकसद से मजदूर व मेहनतकश जनता की अगुआ हिस्से को मजदूर वर्ग के स्वतंत्र व क्रांतिकारी राजनीति की आधार पर जागरूक और संगठित करना होगा। हालांकि यह एक ज्ञात तथ्य है, फिर भी इसे दोहराया जाना ज़रूरी हो गया है क्योंकि मजदूर वर्ग और जनता में संसदीय आकर्षण हावी है और कम्युनिस्ट क्रांतिकारी ग्रुपों के रूप में पहचाने जाने वाले संगठन इस संसदीय आकर्षण से जनता को मुक्त करने के बजाय उसे बढ़ाने में मदद करते हैं । चुनावों में सुधारवादियों के तौर-तरीके और इन क्रांतिकारी संगठनों की भागीदारी के तौर-तरीकों के बीच की सीमा-रेखा धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। इसीलिए संसदीय चुनावों में भाग लेने का क्रांतिकारी रणकौशल का सवाल बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

2.  चुनाव के दौरान कम्युनिस्ट कोई स्वतंत्र बयान नहीं देते हैं। इसीलिए पश्चिम बंगाल के आगामी चुनाव में हमारा अभियान क्या होगा इसका फैसला वर्तमान स्थिति के मुल्यांकन के आधार पर निर्धारित  क्रांतिकारी घोषणाओं के  अनुसार होगा। इस चुनाव के अवसर पर हमारे अभियान का तात्कालिक लक्ष्य होगा मज़दूर वर्ग की पार्टी के निर्माण के मकसद से मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता, खास कर ग्रामीण सर्वहारा वर्ग के अगुआ हिस्से को, जागरूक करना और संगठित करना ।

3.  पिछले कुछ वर्षों में, शासक वर्ग ने मजदूर वर्ग, खेत मजदूर, गरीब किसान और सभी मेहनतकशों पर अपने हमले तेज कर दिए हैं। शासक वर्ग के सबसे कुशल, विश्वसनीय प्रतिनिधि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा संचालित केंद्र सरकार ने इस हमले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2014 में, देश के बड़े पूंजीपति वर्ग के एक बड़े हिस्से ने अपने स्वार्थ में 'आर्थिक सुधार' के आक्रामक अभियान को अमल में लाने के लिए नरेंद्र मोदी और भाजपा को चुना था । सत्ता में आने के बाद से, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार ने अपने आक्रामक 'सुधार अभियान' के द्वारा अच्छी तरह से साबित किया है कि बड़े बुर्जुआ शासक वर्ग ने उन्हें चुनने में कोई गलती नहीं की है। खासकर 2019 में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटने के बाद, भाजपा की केंद्र सरकार एक के बाद एक तेज गति से उन कार्यक्रमों को आक्रामक रुप से लागू कर रही है जो लंबे समय तक बड़े पूंजीपतियों के एजेंडे में रहने के बावजूद व्यवहार में नहीं लाये जा सके थे। । मजदूर सहित गरीब मेहनतकश लोगों के जीवन में सभी बुनियादी समस्याओं की वजह है साम्राज्यवाद और उसपर आश्रित भारत के बड़े बुर्जुआ बड़े जमींदार शासक वर्ग का शोषण और उत्पीड़न, जो अब इस सुधार कार्यक्रम के मदद से बढ़ते ही जा रहे हैं।

4.  केवल भाजपा ही नहीं है जिसने शासक वर्ग के हित में सरकार के ऐसे हमलों को अंजाम दिया। वैश्वीकरण-उदारीकरण का यह अभियान 1991 में तत्कालीन कांग्रेस संचालित केंद्र सरकार के हाथों शुरू हुआ। और अगले दो दशक कांग्रेस सहित विभिन्न बड़े बुर्जुआ दलों और क्षेत्रीय दलों ने केंद्र और राज्य सरकारों में सत्तासीन रहकर एक ही नीति का पालन किया | इस तरह उन्होंने मजदूर, गरीब किसानों और खेत मजदूरों सहित मेहनतकश लोगों पर देशी और विदेशी बड़े पूंजीपतियों के इस हमले में मदद की है। न केवल बड़े पूंजीपतियों की पुरानी वफादार पार्टी कांग्रेस, बल्कि सीपीआई, सीपीआई (एम), सहित तथाकथित वामपंथी पार्टियां, तृणमूल कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों के बारे में भी यह बात लागू होती है । इस अनुभव के माध्यम से, इस तथ्य को मजदूर, मेहनतकश लोगों के ध्यान में लाया जाना चाहिए कि उनकी आजीविका की समस्याओं का असली कारण शासक पूंजीपति वर्ग का शोषण और उत्पीड़न है। सभी स्थापित दल शासक वर्ग के हितों का बचाव कर रहे हैं एवं भाजपा उनमें मौजूदा स्थिति में शासक वर्ग का सबसे कुशल, वफादार प्रतिनिधि है।

5.  मजदूर वर्ग और मेहनतकश लोगों का यह अंधाधुंध शोषण और उत्पीड़न स्वाभाविक रूप से लोगों के बीच में जो असंतोष पैदा कर रहा है, सभी सरकारें उसे दबाने के लिए राज्य तंत्र को और ज्यादा मजबूत करके लोकतांत्रिक अधिकारों के दायरे को सीमित कर रही हैं । दूसरे एक और तरीके से भी, शासक वर्ग और सरकारें लोगों के असंतोष को ठंडा रखने की कोशिश कर रही हैं। वे सौ दिन के काम, खाद्य सुरक्षा, उज्ज्वला परियोजना, स्वच्छ भारत, खाद्य साथी या स्वास्थ्य साथी के नाम पर कुछ छिटपुट राहत देकर गरीब जनता के गुस्से को शांत रखने की कोशिश कर रहे हैं। वर्ग संघर्ष की अनुपस्थिति के कारण, मजदूर और गरीब मेहनतकश लोगों में उनके अपने हकों के चेतना भी कुंद हो गई है| यही कारण है कि ये लोग, विशेष रूप से उनमें पिछड़े हिस्से इस छिटपुट राहत को ही अपने उच्चतम हक़ के रूप में देखते रहे हैं एवं उसे ही प्राप्त करने की पूरी जद्दोजहद में जुट गए हैं और अक्सर उसे के लिये आपसी होड़ में लगे रहते हैं। सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों का तात्कालिक मकसद इस तरह के राहत दिलाने के माध्यम से लोगों का वोट हासिल करना है ताकि वे सत्ता में बने रह सकें। हालाँकि, शासक वर्ग के लिए इसका वास्तविक उद्देश्य है शोषण, उत्पीडन पर आधारित इस सामाजिक संरचना को शोषित और उत्पीड़ित लोगों के गुस्से से बचाना है| उन्हें शोषण से मुक्त समाज के लिए संघर्ष के मार्ग से हटाना।

मज़दूर और ग़रीब मेहनतकश जनता के अगुवा हिस्से के समक्ष इस राहत कार्यक्रम के वर्ग चरित्र को उजागर किए बिना और उसके प्रभाव से मुक्त किये बिना वर्ग की राजनीति में जागरूक और संगठित करना नामुमकिन है। इसलिए उन्हें इस सच्चाई से अवगत कराया जाना चाहिए कि शासक वर्ग उनके आगे राहत के जो चंद टुकड़े फेंक रहे हैं उससे हजार गुना दौलत वे गरीब मेहनतकशों का बेलगाम शोषण के जरिए बटोर रहे हैं | मज़दूर और गरीब जनता इस राहत के चक्कर में नहीं उलझे रह सकते, उनके संघर्ष का मकसद मौजूदा शोषण की इस व्यवस्था का ही उन्मूलन है।

6.  भाजपा का खतरा केवल यह नहीं है कि वह साम्राज्यवाद व उस पर आश्रित  भारत के बड़े बुर्जुआ शासक वर्ग के हित में "सुधार अभियान" को चला कर आम जन समुदाय पर हमला कर रही है । भाजपा और संघ परिवार उग्र हिंदुत्व की अपनी प्रतिक्रियावादी विचारधारा के आधार पर देश को एक फासीवादी हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में ले जा रहे हैं । पिछली सदी के अस्सी के दशक के आखरी हिस्से से शुरू हुए संघ परिवार के इस अभियान में उग्र हिंदुत्ववादी ताकतों को नेतृत्व प्रदान किया और धीरे-धीरे वह व्यापक रूप से फैलता गया और तीव्र होता गया । पिछले तीन दशकों से वे हिंसक सांप्रदायिक प्रचार और गतिविधियों के माध्यम से बहुसंख्यक हिंदू लोगों के बीच सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके साथ जुड़ा हुआ है एक प्रकार का अतिवादी राष्ट्रवाद का प्रचार, जो वास्तव में राष्ट्रवाद नहीं है, बल्कि राष्ट्रवाद के मुखौटे में चरमपंथी हिंदू सांप्रदायिकता है। चरमपंथी हिंदूत्व के अपने प्रचार और गतिविधियों के माध्यम से संघ परिवार हिंदू सांप्रदायिक ताकत को जगाकर समाज में सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ाने के साथ साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष तौर पर मुस्लिम समुदाय, के उत्पीड़न को खतरनाक रूप से बढ़ाकर वास्तव में उनको दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की ओर धकेल रहा है।

हालाँकि, अल्पसंख्यक मुस्लिम लोगों को देश के नागरिकों के दुश्मन के रूप में निशाना साधने की संघ परिवार के इस अभियान का असली लक्ष्य है हमारे देश में जो थोडा बहुत सीमित, संकुचित लोकतंत्र मौजूद है उसे समाप्त कर एक फासीवादी शासन को स्थापित करना। भारतीय राजसत्ता की स्थापना के समय से ही भारत में लोकतंत्र सीमित और सिकुडा हुआ है, और पिछले कुछ दशकों में सत्ता में लगभग हर सरकार ने विभिन्न काले कानूनों को लागू करके शासक वर्ग के हित में इसे और अधिक संकुचित बना दिया है। भाजपा और संघ परिवार अपने स्वयं के फासीवादी अभियानों के लिए उन कानूनों का उपयोग कर रहे हैं और साथ ही आने वाले दिनों में लोकतंत्र पर एक और बड़े एवं अधिक व्यापक हमले की तैयारी कर रहे हैं। इसके नतीजे में मजदूर वर्ग और मेहनतकाश लोगों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। क्योंकि इस फासीवादी अभियान के नतीजे में वे अपने संघर्ष और संगठन बनाने के बचे-खुचे अधिकार को भी खो देंगे और साम्राज्यवाद और बड़े पूंजीपति सहित सभी प्रकार के शोषकों के और अधिक तीव्र शोषण और उत्पीड़न के शिकार होंगे।

7.  संघ परिवार का यह फासीवादी अभियान दलित और आदिवासी लोगों पर उच्च जाति के हिंदुओं के प्रभुत्व को बनाए रखेगा और बढ़ाएगा। इसके अलावा, वे अवैज्ञानिक, अंधविश्वास का प्रचार करके समाज को मध्ययुगीन अंधकार में घसीटना चाहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रगतिशील, लोकतांत्रिक लोगों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित समूचे जनता के जो भी थोडे बहुत अधिकार थे उन सभी लोकतांत्रिक अधिकारों को वे छीनना चाहते हैं।

8.  संघ परिवार और भाजपा का ऐसा उभार होने का कारण है कि वे मज़दूर वर्ग, शोषित, उत्पीड़ित और मेहनतकश जनता के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करने में सफल रहे हैं। यह प्रभाव सिर्फ उनकी उग्र हिंदू सांप्रदायिक राजनीति के वजह से नहीं है। अगर मेहनतकशों पर, विशेषकर पिछड़े हिस्सों पर संघ परिवार और भाजपा के प्रभाव के कारणों को पूरी तरह से नहीं समझा जाता है तो उनसे निपटने के तरीकों को भी नहीं समझा जा सकता है। पहला, संघ परिवार और भाजपा के बढ़ते प्रभाव का एक बड़ा कारण मजदूर वर्ग तथा मेहनतकश जनता में सामान्य रूप से फैला हुआ निराशा का माहौल है। अंतरराष्ट्रीय सर्वहारा विश्व समाजवादी आंदोलन के पहले अभियान की जबरदस्त हार की वजह से पिछले कुछ दशकों में शासक वर्ग के हमले के सामने मजदूर वर्ग व मेहनतकशों को एकतरफा मार सहनी पड़ रही है। इस पराजय का प्रभाव इतना सर्वव्यापी है कि मजदूर वर्ग बिखर गया है | इतने वर्षों के बाद भी वे अपनी खुद की एक वर्ग पार्टी में संगठित नहीं हो सके। इन हमलों का प्रतिरोध करने में असमर्थता की वजह से मजदूर व मेहनतकश जनता में समग्र रूप से निराशा छाई हुई है। वे अपने बल-बूते पर इस स्थिति से निपटने में सक्षम होंगे , सामान्यतः यह आत्मविश्वास अभी भी उनके बीच दिखाई नहीं दे रहा । दूसरा, वैश्वीकरण और उदारीकरण के हमले की शुरुआत के बाद, मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता ने सरकारों को बदलने के माध्यम से  इन हमलों का मुकाबला करने का प्रयास किया। सरकार बदलने के इस अनुभव से लोगों को यह स्पष्ट हो गया है कि सभी स्थापित पार्टी समान रूप से जनविरोधी, भ्रष्ट और अनैतिक है। एक ओर स्थापित राजनीतिक दलों से उनका मोह भंग हुआ है।  दूसरी ओर अपनी खुद की क्षमता में विश्वास नहीं है। इसकी वजह से वे अपने  वर्ग के बाहर किसी भी बल के सहारे अपनी समस्याओं से भरे जीवन से बाहर निकलने का मार्ग खोज रहे हैं। पिछड़े गरीब मेहनतकश लोगों की इस आकांक्षा का उपयोग करके, नरेंद्र मोदी ने "अच्छे दिनों" के सपने को दिखाते हुए खुद को मुक्तिदाता की भूमिका में प्रस्तुत किया है और उनके बीच एक प्रभाव बनाने में सफल रहा है। पिछले कुछ वर्षों में भाजपा सरकार के अनुभव ने मजदूर व मेहनतकश लोगों के बीच मोदी के मुक्तिदाता की छवि को थोड़ा धुमिल किया है, लेकिन यह अभी भी बरकरार है।

9.  भाजपा और संघ परिवार के प्रति जनता के, विशेष रूप से हिंदू समुदाय के, एक बड़े हिस्से से समर्थन प्राप्त होने के पीछे एक और कारण है । विश्व समाजवादी आंदोलन की चौतरफा हार और विशेषकर पश्चिम बंगाल में सीपीआई(एम) सहित वाम दलों के विश्वासघात के कटु अनुभव के नतीजे में मजदूर वर्ग सहित मेहनतकश लोगों में न केवल निष्क्रियता और निराशा दिखाई पड़ रही है, बल्कि विचारधारा के धरातल पर भी एक ख़ालीपन पैदा हो गया है। एक समय समाजवाद शोषणमुक्त समाज के प्रति लोगों में जो आकर्षण था, वह अब नहीं रहा । स्थिर पानी में बदबू की तरह मजदूर वर्ग, मेहनतकशों के बीच सांप्रदायिकता, अंध धर्म-विश्वास आदि जैसे प्रतिक्रियावादी विचारधारा के फलने-फूलने के लिए अनुकूल वातावरण पैदा हुई है | इस अनुकूल वातावरण का उपयोग करते हुए संघ परिवार अपने उग्र हिंदू सांप्रदायिक प्रचार और गतिविधियों के माध्यम से हिंदू आबादी के एक बड़े हिस्से को अपनी ओर वैचारिक रूप से आकर्षित करने में सक्षम रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि संघ परिवार के फासीवादी अभियान की असली ताकत हिंदू समुदाय के मेहनतकश लोगों के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर उनके अतिवादी हिंदू विचारधारा के प्रभाव से उत्पन्न हो रही है। अतः भाजपा तथा संघ परिवार के फासीवादी अभियान को रोकने के लिए, पिछड़े मेहनतकश जनता को भाजपा और संघ परिवार के अतिवादी हिंदुत्व की फासीवादी राजनीति के प्रभाव से मुक्त करना होगा और यह केवल मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी राजनीति के विकास के माध्यम से ही किया जा सकता है ।

10.  इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनावों में प्रतिद्वंद्वी बुर्जुआ राजनीतिक पार्टियों में से एक है, जो पश्चिम बंगाल के साथ समूचे देश की मजदूर वर्ग, खेतिहर मजदूर, गरीब किसान सहित तमाम मेहनतकश तबके के लिए मुख्य खतरा बनकर उभरी है। इसी दौरान उत्तरी और मध्य भारतीय राज्यों से लेकर पूर्व और उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों और दक्षिण के कुछ राज्यों तक ये पार्टी अपना प्रभाव फ़ैलाने में सफल रही है। इस प्रभाव के कारण, उसने पिछले दो लोकसभा चुनाव भारी बहुमत से जीते  हैं। इसके अलावा, वे उन कई राज्यों में सरकारें बनाने में सफल रही है जहाँ पहले उसका कोई संगठन नहीं था। हालांकि भाजपा पश्चिम बंगाल में एक राजनीतिक ताकत के रूप में कमजोर है, फिर भी उसने पिछले कुछ वर्षों में पर्याप्त शक्ति प्राप्त की है और पहले की तुलना में सत्ता पर कब्जा करने के बहुत करीब आ गई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर पश्चिम बंगाल में भी ये पार्टी चुनावों के माध्यम से सत्ता में आती है, तो यह पश्चिम बंगाल के मजदूर व मेहनतकश लोगों के लिए अधिक खतरनाक साबित  होगा।

11. पश्चिम बंगाल की विधानसभा चुनाव के अन्य प्रमुख राजनीतिक दल, अर्थात् सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस, वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन, आदि सभी अतित में राज्य या केंद्र में किसी न किसी रुप में सत्तासीन रहे हैं। वे चाहे जिस भी सरकार में रहे हों, उन्होंने सत्ता में रहकर भारत के बड़े पूंजीपतियों के हिफाज़त की है और उनके हित में ‘सुधार कार्यक्रम’ को चलाकर मजदूर तथा मेहनतकशों पर शोषण और उत्पीड़न का बोझ बढ़ाने में मदद की है। जब भी मजदूर या गरीब मेहनतकश जनता अपनी आजीविका के लिए संघर्ष में उतरी है तो हर सरकार ने उसे दबाने में सक्रिय भूमिका निभाई है । इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि वे सत्ता में आते हैं, तो वे भी बड़े पूंजीपति और जमींदार-जोतदार-गैर-किसान मालिकों के शोषण को बनाए रखने के लिए दमनकारी राज्य तंत्र का उपयोग करेंगे।

12.  जबकि तृणमूल कांग्रेस, वाम मोर्चा या कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल भाजपा और संघ परिवार की तरह चरमपंथी हिंदू सांप्रदायिक और फासीवादी ताकत नहीं हैं, फिर भी वे वास्तव में धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकत नहीं हैं। अलग-अलग समय पर उन्होंने पिछड़े तबके के लोगों से वोट पाने के लिए धार्मिक और सांप्रदायिक विचारधाराओं और यहां तक ​​कि विभिन्न सांप्रदायिक ताकतों के साथ समझौता किया है। जैसा कि भाजपा और संघ परिवार की उग्रवादी हिंदुत्व विचारधारा समाज में जड़ जमा रही है, कांग्रेस या तृणमूल कांग्रेस जैसे संगठन एक प्रकार की नरम हिंदुत्व की राजनीति की ओर झुक रहे हैं। वास्तव में, उनके पास संघ परिवार और भाजपा के साथ वैचारिक रूप से निपटने की कोई ताकत नहीं है। बल्कि, यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके जनविरोधी, भ्रष्ट और सबसे ऊपर उनके अनैतिक, सत्ता की भूखी राजनति ने जनता को इनके खिलाफ कर दिया है और इनके बारे में लोगों का भरोसा टूट जाना भाजपा और संघ परिवार के उभार के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक है । नतीजतन, भले ही वे भाजपा से कम खतरनाक हों, लेकिन अंतिम निर्णय में इन विपक्षी पार्टियों का सत्ता में आने से भाजपा को सत्तासीन होने से रोकना संभव नहीं है।

13.  सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संघ परिवार के इस फासीवादी आंदोलन का उभार मुख्य रूप से संसद के दायरे के बाहर से हो रहा है। चूंकि फासीवाद का लक्ष्य वर्तमान बुर्जुआ लोकतंत्र के संवैधानिक ढांचे को तोड़ना और फासीवादी राजसत्ता स्थापित करना है। इसलिए वे न केवल संसद के भीतर संवैधानिक पथ का अनुसरण कर रहे हैं,बल्कि वे आवश्यकता के अनुसार संसद के बाहर भी असंवैधानिक पथ को अपनाने में नहीं हिचकिचा रहे हैं। इस वजह से, केवल संसदीय मार्ग के माध्यम से फासीवाद के उभार को रोकने के बारे में सोचना मूर्खतापूर्ण होगा।

14.  संघ परिवार और भाजपा के उभार को रोकने का एकमात्र मार्ग वर्ग संघर्ष को विकसित करने का मार्ग है। संघ परिवार की असली ताकत राजसत्ता नहीं है, इसकी असली ताकत पिछड़े हिंदू बहुमत जनता के एक बड़े हिस्से से प्राप्त समर्थन है। केवल मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता के संघर्ष का विकास ही संघ परिवार की इस नींव को कमजोर कर सकता है और समाज में उस ताकत को जन्म दे सकता है जो संघर्ष के मैदान में संघ परिवार के फासीवादी अभियान का मुकाबला कर सकता है। इसके कुछ संकेत हाल के दिनों में देखे गए हैं, पहले सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के मामले में और बाद में वर्तमान किसान आंदोलन में। दोनों ही मामलों में, भाजपा ने संसद में अपने बहुमत का उपयोग कर कानूनों को आसानी से पारित करा लिया । विपक्षी दल संसद में भाजपा की इस साजिश को रोक नहीं पाए हैं। दूसरी ओर, उनके पास संसद के बाहर संघर्ष के मैदान पर भाजपा की साजिश के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की क्षमता या इच्छाशक्ति दिखाई नहीं दी है । लेकिन दोनों ही मामलों में, संघ परिवार और भाजपा की साजिश को लोगों के एक हिस्से के स्वतःस्फूर्त और मजबूत प्रतिरोध का सामना करना पड़ा । जनता के ये स्वतःस्फूर्त संघर्ष न केवल बुर्जुआ राजनीतिक दलों के नेतृत्व के बिना, और उनकी भागीदारी के बिना, हुआ, बल्कि दोनों ही मामलों में आंदोलनकारी जनता ने सचेत रूप से उनसे दूरी बनाये रखी। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भाजपा और संघ परिवार के विरोध का सामना करने की ताकत विपक्षी बुर्जुआ राजनीतिक दलों के हाथों में नहीं है, वह जनता के पास है, इसलिए क्रांतिकारीयों को इन्हें जागृत करने की कोशिश करनी चाहिए।

15.  हालाँकि, इन संघर्षों की सीमाएँ हैं | सबसे पहले, ये संघर्ष भाजपा सरकार द्वारा उठाये गए कुछ विशेष कदमों के विरोध तक ही सीमित हैं । दूसरा, अगर ऐसा है भी कि स्थापित बुर्जुआ-पेटी-बुर्जुआ राजनीतिक दल संघर्ष का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं, फिर भी इन संघर्षों का नेतृत्व पेटी-बुर्जुआ व बुर्जुआ वर्ग के विभिन्न हिस्सों के हाथों में है। यही कारण है कि वास्तविक लोकतंत्र के संघर्ष के मकसद से सभी मेहनतकश लोगों को एकजुट करने की क्षमता इन संघर्षों के पास नहीं है। संघ परिवार के फासीवादी अभियान का केवल सच्चे लोकतंत्र के द्वारा ही सही मायने में मुकाबला किया जा सकता है | और यह केवल मजदूर वर्ग के नेतृत्व में किसानों और खेत मजदूरों सहित सभी मेहनतकशों के एकजुट क्रांतिकारी संघर्ष से संभव है। लेकिन, बदकिस्मती की बात है, लोकतंत्र के संघर्ष में सबसे दृढ ताकत मजदूर वर्ग अभी संघर्ष के मैदान पर नहीं है। समाज के अन्य उत्पीड़ित वर्गों पर हमले के खिलाफ खड़ा होना, उनका नेतृत्व करना तो दूर की बात, वे  अपने ही वर्ग के खिलाफ एक के बाद एक हमले के बावजूद अभी तक प्रतिरोध संघर्ष में शामिल नहीं हुए हैं। जब तक मज़दूर वर्ग का अगुआ दस्ता स्वतंत्र राजनीति के आधार पर मज़दूर वर्ग की पार्टी का निर्माण नहीं कर सकता है, तब तक मज़दूर वर्ग समाज में अगुआ भूमिका नहीं निभा सकेगा और न ही अपनी मुक्ति के लक्ष्य में आगे बढ़ सकेगा। कम्युनिस्टों का काम है मज़दूर वर्ग की इस शक्ति को जगाने के लिए जी जान से कोशिश करना। अतः पश्चिम बंगाल की आगामी विधानसभा चुनावों में, मजदूर वर्ग सहित, मेहनतकशों के समक्ष मौजूदा स्थिति में फासीवाद के उभार के खतरे को उजागर करते हुए उसके खिलाफ संघर्ष निर्माण के मकसद से मजदूर वर्ग को संगठित होने की आवश्यकता है | संसदीय दायरे में सीमित न रहकर समाज की संरचना में क्रांतिकारी बदलावों के माध्यम से शोषण से मुक्त समाज के निर्माण के लिए एक स्वतंत्र पार्टी बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जाना चाहिए। इस चुनाव में मजदूर वर्ग के अगुआ हिस्से के प्रतिनिधि के रूप में यह हमारा मुख्य कार्यभार है।

16.  इस चुनाव में मजदूर वर्ग का कोई प्रतिनिधि चुनाव नहीं लड़ रहा है। मूल रूप से, विभिन्न बुर्जुआ राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि या उम्मीदवार प्रतिद्वंद्वी के रूप में चुनाव के मैदान में मौजूद हैं। चूंकि पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों में उग्र हिन्दू सांप्रदायिक व फ़ासीवादी पार्टी भाजपा मुख्य प्रतिद्वंद्वियों में से एक है, इसलिए कम्युनिस्ट क्रांतिकारी शिविर में भाजपा के खिलाफ मतदान का सवाल सामने आया है। हमें इस सवाल को मजदूर वर्ग की राजनीति के नजरिया से आंकना होगा।

हम जानते हैं कि संघ परिवार के इस फासीवादी आंदोलन का उभार मुख्य रूप से संसद के दायरे के बाहर से हुआ है। संघ परिवार की ताकत का स्रोत, मुख्य रूप से, जनता है, खासकर हिंदू समुदाय का एक बड़ा हिस्सा, जो अपने पिछड़े चेतना के कारण भाजपा और संघ परिवार का समर्थन कर रहा है। नतीजतन, चुनावों में भाजपा को हराकर फासीवाद को रोका जा सकेगा यह बात सही नहीं है। दूसरा, भाजपा विरोधी बुर्जुआ राजनीतिक दलों के सत्ता में आने से भाजपा का उभार को रोकना संभव नहीं हो रहा है। बल्कि इन पार्टियों की जनविरोधी, भ्रष्ट, व सर्वोपरि अनैतिक राजनीति लोगों के एक बड़े हिस्से को भाजपा की ओर ही धकेल रही है। इसके अलावा, हम पहले ही देख चुके हैं कि ये राजनीतिक पार्टियाँ वास्तविक अर्थों में भाजपा और संघ परिवार की फासीवादी राजनीति का विरोध नहीं कर रहे हैं |  वे वास्तविक अर्थों में इसका विरोध करने की स्थिति में ही नहीं हैं। भाजपा की राजनीति और उनकी राजनीति के बीच की खाई कम होती जा रही है और चुनाव से पहले इन पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के दल बदलने के खेल से यह साफ जाहिर हो रहा है कि वे किस हद तक सत्ता के भूखे हैं । लिहाज़ा, यह सोचने का कोई भौतिक आधार नहीं है कि उन्हें सत्ता में लाने से भाजपा और संघ परिवार का उभार रुक सकता है।

यह सच है कि अगर भाजपा अगले चुनावों में सत्ता में आती है, तो यह मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता के वर्ग संघर्ष के लिए और अधिक प्रतिकूल स्थिति पैदा करेगी। समाज में सांप्रदायिक नफरत और विभाजन बढ़ेगा। संघ परिवार की अतिवादी सांप्रदायिक राजनीति का प्रभाव बढ़ेगा जो मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता की वर्ग चेतना को और दूषित करेगा। ऊपर से लोकतंत्र का दायरा और सिकुड़ेंगे। लेकिन, भाजपा को सत्ता में आने से रोकने पर भी (हालांकि किसी एक या सभी कम्युनिस्ट क्रांतिकारी ग्रुपों के संयुक्त प्रयास से भी चुनाव के परिणाम को प्रभावित नहीं किया जा सकता है) क्या संघ परिवार के अभियान को रोका जा सकता है ? संघ परिवार की प्रगति को रोकने का एकमात्र तरीका वर्ग संघर्ष है। चुनावों में भाजपा के खिलाफ मतदान द्वारा भाजपा को रोकने की बात कहना (जिसका मतलब विपक्षी बुर्जुआ राजनीतिक पार्टियों को वोट देने की बात कहना ) इस सच्चाई के खिलाफ है । इससे भी बड़ा सवाल यह है कि फासीवाद को रोकने के लिए संघर्ष करना और क्रांतिकारी संघर्ष करना मजदूर वर्ग की अगुआ हिस्सा के लिए अलग नहीं हैं। फासीवाद को केवल क्रांतिकारी वर्ग संघर्ष के रास्ते से ही रोका जा सकता है और फासीवाद से लड़े और परास्त किए बिना क्रांतिकारी संघर्ष को विकसित भी नहीं किया जा सकता । इसे शुरू करने के लिए, पहले मजदूर वर्ग को एक स्वतंत्र वर्ग के रूप में खड़ा होना चाहिए, अपनी वर्ग पार्टी का निर्माण करना चाहिए। इसीलिए मजदूरों और मेहनती लोगों के अगुआ दस्ते को तैयार करना होगा । इस चुनाव में भी यही हमारा मुख्य कार्यभार है। आज, अगर फासीवाद को रोकने के लिए इन पार्टियों के पक्ष में वोट देने को कहा जाता है (या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से), तो इसका मतलब होगा कि मजदूर एवं मेहनतकश जनता के अगुआ हिस्से को उन विपक्षी पार्टियों पर भरोसा करने के लिए बोलना, उन्हें संसदीय दायरे में समेटकर रखना, जो कि इन सभी बुर्जुआ पार्टियों की विचारधारा और राजनीति से स्वतंत्र हो कर वर्ग के रूप में संगठित होने के कार्यभार के खिलाफ है | भाजपा के बजाय इन बुर्जुआ विपक्षी पार्टियों  के सत्तासीन होने के वजह से जो भी थोडी बहुत अनुकूल स्थिति पैदा होगी उसके एवज में इन भाजपा विरोधी पार्टियों को वोट देने का बात कह कर हम अपने मुख्य कार्यभार को ही व्यावहारिक रूप से त्याग देंगे। यह कभी भी खुद को मजदूर वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में दावा करने वाले किसी भी संगठन द्वारा नहीं किया जा सकता है।

17.  मज़दूर वर्ग सहित मेहनतकश लोगों की चेतना के मौजूदा स्तर को ध्यान में रखते हुए हमें अपने क्रांतिकारी प्रचार को इस तरह से अंजाम देना होगा जो उन्हें छू सके।  चुनाव एक ऐसा राजनीतिक संघर्ष है जिसमें संपूर्ण जनता हिस्सा लेती है। इसलिए इस समय क्रांतिकारी लोगों को जनता के सामने अपने स्वतंत्र क्रांतिकारी विचार रखने का मौका मिल जाता है। यह सच है कि मौजूदा दौर में कम्युनिस्ट पार्टी व वर्ग संघर्ष न होने के कारण मजदूर एंव मेहनतकश जनता की चेतना सुधारों के दायरे में सीमित है। ऐसी परिस्थिति में मजदूर एंव मेहनतकश जनता को समाज की अमूलचूल क्रांतिकारी बदलाव के बारें में सोचने के लिए प्रेरित करना बेहद कठिन है। लेकिन यह भी सच है कि उनके अपने जीवन के अनुभव मजदूर एंव मेहनतकश जनता को तीव्र गरीबी एंव शोषण-उत्पीडन से मुक्ति की ओर धकेल रही है। एक हद तक बुर्जुआ राजनीतिक दलों के बारें में उनका मोह भंग भी हो रहा है। अतः उनके जीवन के अनुभव से जुड़ कर एक दूसरे मार्ग की बात करना, मुक्ति के मार्ग की बात उनके सामने रखना, मुमकिन है एंव यही है क्रांतिकारियों का कार्यभार। सर्वोपरि इस चुनाव को केन्द्र में रखकर मजदूर वर्ग की एक स्वतंत्र आवाज बुलंद करने की कोशिश करना भी क्रांतिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यभार है।  

 

                                   सर्वहारा पथ          फरवरी 2021